NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 4 आदिवासी, दिकु और एक स्वर्ण युग की

NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 4 आदिवासी, दिकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना के लिए NCERT solution में इतिहास पुस्तक – हमारे अतीत -III में दिए गए अभ्यासों के समाधान शामिल हैं।कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान पाठ 4 के प्रश्न उत्तर को NCERT को ध्यान में रखकर छात्रों की सहायता के लिए बनाया गया हैं।

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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास पुस्तक अध्याय संक्षेप में
अध्याय 4 – आदिवासी, दिकु और स्वर्ण युग की परिकल्पना

इस अध्याय में, छात्र विभिन्न श्रेणियों के लोगों जैसे स्थानांतरित कृषकों, आदिवासियों और चरवाहों के बारे में जानेंगे। व्यापारियों, साहूकारों और दिकुओं के आगमन से आदिवासियों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा। छात्रों को बिरसा मुंडा नामक एक आदिवासी नेता के बारे में भी पता चलेगा, जिन्होंने डिकस के खिलाफ आदिवासी भूमि को मुक्त कराने के लिए विद्रोह का नेतृत्व किया था। छात्र विषय विशेषज्ञों द्वारा डिज़ाइन किए गए एनसीईआरटी सॉल्यूशंस से इन-टेक्स्ट प्रश्नों के सटीक और सटीक उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।

NCERT Solutions for Class 8
विषय : सामाजिक विज्ञान इतिहास (हमारे अतीत – III)

अध्याय 4. आदिवासी, दिकु और स्वर्ण युग की परिकल्पना (Hindi Medium)

फिर से याद करें :-

प्रश्न 1.  रिक्त स्थान भरें :
(क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को …………… के रूप में वर्णित किया।
(ख) झुम खेती में बीज बोने के तरीके को ……………………. कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओं को : …………………… स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के ……………… और बिहार की ………………………. में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।
उत्तर   (क) अंग्रेजों ने आदिवासियों को जंगली और बर्बर   के रूप में वर्णित किया।
(ख) झुम खेती में बीज बोने के तरीके को बिखेरना   कहा जाता है।
(ग) मध्य भारत में ब्रिटिश भूमि बंदोबस्त के अंतर्गत आदिवासी मुखियाओं को भूमि का स्वामित्व मिल गया।
(घ) असम के चाय बागानों और बिहार की …कोयला खानों. में काम करने के लिए आदिवासी जाने लगे।

प्रश्न 2.  सही या गलत बताएँ :
(क) झूम काश्तकार ज़मीन की जुताई करते हैं और बीज रोपते हैं।

उत्तर    गलत

(ख) व्यापारी संथालों से कृमिकोष खरीदकर उसे पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचते थे।
उत्तर 
सही

(ग) बिरसा ने अपने अनुयायियों का आह्वान किया कि वे अपना शुद्धिकरण करें, शराब पीना छोड़ दें और डायन व जादू-टोने जैसी प्रथाओं में यकीन न करें।
उत्तर  सही

(घ) अंग्रेज़ आदिवासियों की जीवन पद्धति को बचाए रखना चाहते थे।
उत्तर  गलत।

आइए विचार करें

प्रश्न 3.  ब्रिटिश शासन में घुमंतू काश्तकारों के सामने कौन सी समस्याएँ थीं?
उत्तर     घुमूंत काश्तकारों के सामने समस्याएँ

  1. अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए घुमंतू काश्तकारों को एक जगह रहने पर मजबूर कर दिया था। इससे घुमंतू काश्तकारों की स्वतंत्रता भंग हो रही थी।
  2. घुमंतू कातश्कार जो ब्रिटिश मॉडल के अनुसार हल-बैल के प्रयोग द्वारा खेती करते थे जिससे उन्हें | कठिनाई होती थी, क्योंकि उन्हें खेती से अच्छी पैदावार नहीं मिल रही है जिससे उन्हें लगान चुकाना मुश्किल हो रहा था।
  3. घुमंतू काश्तकारों ने धीरे-धीरे खेती की इस विधि का विरोध करना शुरू कर दिया, क्योंकि वे घुमंतू| खेती या झूम खेती पर वापस लौटना चाहते थे।

प्रश्न 4.   औपनिवेशिक शासन के तहत आदिवासी मुखियाओं की ताकत में क्या बदलाव आए?
उत्तर     आदिवासी मुखियाओं की ताकत में बदलाव

  1. आदिवासी मुखियाओं के कई प्रशासनिक अधिकार खत्म हो गए। उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया गया।
  2. आदिवासी मुखियाओं को जब अंग्रेज़ अधिकारियों को नजराना देना पड़ता था और अंग्रेजों के प्रतिनिधि के रूप में अपने समूहों को अनुशासन में रखना होता था।
  3. आदिवासी मुखियाओं के पास जो ताकत पहले थी अब वह ताकत नहीं रही। वे परंपरागत कार्यों को करने के लिए भी लाचार हो गए।

प्रश्न 5.  दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के क्या कारण थे?
उत्तर   दीकुओं से आदिवासियों के गुस्से के कारण निम्नलिखित प्रकार से थे।

  • आदिवासी लोग बाहरी लोगों को दिकू कहते थे। दिकुओं ने आदिवासियों की जमीन छीन ली थी।
  • दिकुओं ने आदिवासियों का अधिकार और आजादी भी छीन ली थी।
  • दिकुओं ने आदिवासियों को गरीबी और कर्ज में धकेल दिया था।
  • आदिवासी लोग इन्हें भारी शैतान मानते थे। यही उनके गुस्से होने के कुछ कारण थे।

प्रश्न 6.  बिरसा की कल्पना में स्वर्ण युग किस तरह का था? आपकी राय में यह कल्पना लोगों को इतनी आकर्षक क्यों लग रही थी?
उत्तर    बिरसा की स्वर्ण युग की कल्पना उनकी भूमि को दिकुओं से मुक्त कराने की थी। वह उस युग को ‘सत्य का युग’ मानते थे। बिरसा के अनुसार, स्वर्ण युग में आदिवासी सरदार स्वयं शासन करने में सक्षम होंगे और उन पर हुक्म चलाने वाला कोई नहीं होगा। उनकी स्वर्ण युग की परिकल्पना एक ऐसे युग की थी जिसमें शराब, जादू-टोना, जादू-टोना और अस्वच्छता जैसी बुराइयां न हों। वह मिशनरियों, हिंदू जमींदारों, साहूकारों, व्यापारियों और यूरोपीय जैसे बाहरी प्रतिभागियों की कोई भूमिका नहीं चाहते थे।

आइए करके देखें

प्रश्न 7. अपने माता-पिता दोस्तों या शिक्षकों से बात करके बीसवीं सदी के अन्य आदिवासी विद्रोहों के नायकों के नाम पता करें। उनकी कहानी अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर  ताना भगत आंदोलन 1914-1919 के दौरान ताना भगत और उरांव जनजातियों का एक जनजातीय विद्रोह था। इसकी शुरुआत बिहार जिले के छोटानागपुर क्षेत्र में हुई थी, जो अब झारखंड में है। यह आंदोलन यात्रा उरांव के नेतृत्व में चल रहा था। यह महात्मा गांधी से भी पहले शुरू किया गया सत्याग्रह था।  यह आंदोलन अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों के खिलाफ था।  वे सभी साहूकारों, जमींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों के विरोध में थे। ताना भगत अहिंसा के विश्वासी थे और महात्मा गांधी का अनुसरण करते थे।

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