NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार के लिए NCERT solution में इतिहास पुस्तक – हमारे अतीत -III में दिए गए अभ्यासों के समाधान शामिल हैं।कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान पाठ 7 के प्रश्न उत्तर को NCERT को ध्यान में रखकर छात्रों की सहायता के लिए बनाया गया हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास हमारे अतीत -3 का उदेश्य केवल अच्छी शिक्षा देना हैं। यदि आप कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान के प्रश्न उत्तर (Class 8 Social Science NCERT Solutions) पढ़ना चाहते है तो आप सही जगह पे आए है। आपको बात दे की सामाजिक विज्ञान विषय के यह कक्षा 8 एनसीईआरटी समाधान पीडीएफ़ की तौर मे डाउनलोड भी कर सकते है।
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NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 7 महिलाएँ, जाति एवं सुधार Download as PDF
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास पुस्तक अध्याय संक्षेप में
इस अध्याय में जातिवाद विरोध, महिलाओं के पक्ष में सुधार और अन्य संबंधित अवधारणाओं पर संक्षेप में चर्चा की गई है। छात्र भारतीय समाज में लैंगिक असमानता के इतिहास और प्रकृति के बारे में जानेंगे। इससे छात्रों को लड़कियों के बीच अशिक्षा, भारत में विधवाओं की ऐतिहासिक दुर्दशा और निचली जाति के लोगों की स्थितियों को समझने में भी मदद मिलेगी। इस अध्याय में ज्योतिराव फुले, राजा राम मोहन राय और अन्य जैसे सामाजिक सुधारवादियों की भूमिका बताई गई है।
NCERT Solutions for Class 8
विषय : सामाजिक विज्ञान इतिहास (हमारे अतीत – III)
अध्याय 7. महिलाएँ, जाति एवं सुधार (Hindi Medium)
फिर से याद करें:-
प्रश्न 1 – निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया :-
राममोहन राय
दयानंद सरस्वती
वीरासलिंगम पन्तुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज अली
ईश्वर चंद्र विद्यासागर
उत्तर।
राममोहन राय – सती प्रथा पर प्रतिबंध
दयानंद सरस्वती – विधवा पुनर्विवाह
वीरासलिंगम पंतुलु – विधवा पुनर्विवाह
ज्योतिराव फुले – जातियों के बीच समानता
पंडिता रमाबाई – महिला शिक्षा
पेरियार – अछूतों को समानता
मुमताज अली – महिला शिक्षा
ईश्वर चंद्र विद्यासागर – विधवा पुनर्विवाह
प्रश्न 2 – निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ :-
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपत्ति उत्तराधिकार आदि के बारे में नए कानून बना दिए।
उत्तर :- सही
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर – तरीकों में सुधार के लिए प्राचीन ग्रंथों से दूर रहना पड़ता था।
उत्तर :- गलत
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलता था।
उत्तर :- गलत
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 पारित किया गया था।
उत्तर :- गलत
आइए विचार करें
प्रश्न 3 – प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली ?
उत्तर :- कानून बनाने में मदद
- संचार के नए तरीके विकसित हो गए थे।
- पहली बार किताबें, अखबार, पत्रिकाएँ, पर्चे और पुस्तिकाएँ छप रही थीं, ये चीजें पुराने साधनों के मुकाबले सस्ती थीं, इसलिए ज्यादा लोगों की पहुँच में भी थी।
- नए शहरों में हर प्रकार के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और धार्मिक मुद्दों पर चर्चाएँ आम जनता तक पहुँचीं।
प्रश्न 4 – लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे लोगों के पास कौन – कौन से कारण होते थे ?
उत्तर :-लड़कियों को स्कूल न भेजने के पीछे कई कारण थे :-
- लोगों को लगता था कि अगर लड़कियां पढ़ लेंगी तो घर का काम कौन करेगा ?
- पढ़ने वाली लड़कियां घर का काम नहीं कर पायेंगी। जिससे घरेलू काम करने में दिक्कत होगी।
- लोगों को विश्वास था कि अगर औरत पढ़ी-लिखी होगी तो वह जल्दी विधवा हो जाएगी।
- अगर लड़की पढ़ी लिखी होगी तो संपत्ति पर अपना अधिकारी जमाना शुरू कर देगी।
- लड़कियां स्कूल कैसे जाएंगी और सार्वजनिक स्थानों से कैसे निकलेंगी। सब कारण थे स्कूल न भेजने के।
प्रश्न 5 – ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे ?
उत्तर :- कई लोग जाति आधारित समाज के आदिवासी समुदायों तथा पिछड़े वर्गों से होने वाले अन्याय से दुखी थे। वे समानता के व्यवहार की कामना करते थे। ईसाई प्रचारकों ने जब इनके बच्चों के लिए स्कूल खोले तो अन्य जातियों के बच्चों की तरह वह भी स्कूल जाने लगे। कुछ आदिवासी समुदायों को ईसाई धर्म में भी परिवर्तित किया जा रहा था। इसलिए बहुत से लोग ईसाई प्रचारकों की आलोचना करने लगे थे। परंतु कुछ सुधारक ऐसे भी थे जो इन लोगों को समाज में सम्मान दिलाना चाहते थे। इन लोगों, विशेषकर सुधारकों ने ईसाई प्रचारकों द्वारा पिछड़ी जातियों के हित में उठाए गये कदमों का समर्थन किया।
प्रश्न 6 – अंग्रेज़ों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो “ निम्न “ मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे ?
उत्तर :- ‘निम्न‘ मानी जाने वाली जातियां सवर्ण ज़मींदारों के उत्पीड़न से दुःखी थीं। उन्हें ऐसे काम करने पड़ते थे जो घृणित समझे जाते थे। अंग्रेजी काल में शहरों के विस्तार से काम के नए अवसर पैदा हुए और श्रम की मांग बढ़ गई। शहरों में कुलियों, खुदाई करने वालों, बोझा ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, सफाई कर्मियों, नालियां साफ करने वालों, रिक्शा खींचने वालों आदि की जरूरत थी। इन कामों के लिए गाँवों और छोटे कस्बों के ग़रीब लोग शहरों की ओर जाने लगे। इनमें बहुत से लोग पिछड़े वर्गों के भी थे। इन कामों के अतिरिक्त कुछ लोग असम, मॉरिशस, त्रिनिदाद तथा इंडोनेशिया आदि स्थानों पर बागानों में काम करने भी चले गए। भले ही नए स्थानों पर काम बहुत कठोर था। उत्पीड़ित जातियों के लोगों के लिए यह गाँवों में सवर्ण जमींदारों के दमनकारी नियंत्रण से मुक्ति पाने का अवसर था।
प्रश्न 7 – ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज में जातीय असमानताओं की आलोचनाओं को किस तरह सही ठहराया ?
उत्तर :- 19वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के आरंभ तक भारतीय समाज जातीय असमानताओं से बुरी तरह ग्रस्त था। निम्न कही जाने वाली जातियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था। अतः तत्कालीन समाज सुधारकों ने अन्याय के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। इन सुधारकों में ज्योतिराव फूले, डॉ० बी० आर० अंबेडकर नायकर प्रमुख थे। अपनी बात को सही ठहराने के लिए ज्योतिराव ने ब्राह्मणों के इस दावे का जोरदार खंडन किया कि आर्य होने के नाते वे दूसरों से श्रेष्ठ हैं। उन्होंने तर्क दिया कि आर्य विदेशी थे। जो बाहर से आए थे। उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को हराकर अपना दास बना लिया था। जब आर्यों ने अपना प्रभुत्व स्थापित दी लिया तो वे पराजित जनता को नीच तथा निम्न जाति वाला मानने लगे। फूले का मानना था कि ‘ऊँची‘ जातियों का उनकी जमीन और सत्ता पर कोई अधिकार नहीं है, यह धरती यहाँ के देशी लोगों की है जिन्हें आर्यों ने निम्न जाति का नाम दे दिया। फूले के अनुसार आर्यों के शासन से पहले यहाँ स्वर्ण युग था। उस समय योद्धा – किसान ज़मीन जोतते थे और मराठे देहात पर न्यायसंगत और निष्पक्ष तरीके से शासन करते थे। इसलिए जातीय भेदभाव समाप्त होना ही चाहिए। राममोहन राय ने जाति व्यवस्था की आलोचना करने वाले एक प्राचीन बौद्ध ग्रंथ का अनुवाद किया। कुछ सुधारकों ने भक्ति परंपरा को अपनी आलोचना का आधार बनाया जो जातीय असमानता की कट्टर विरोधी थी। पूर्वी बंगाल में हरिदास ठाकुर ने जाति व्यवस्था को सही ठहराने वाले ब्राह्मण ग्रंथों को चुनौती दी।
प्रश्न 8 – फुले ने अपनी पुस्तक गुलामगौरी को गुलामों की आजादी के लिए चल रहे अमेरिकी आंदोलन को समर्पित क्यों किया ?
उत्तर :- डॉ० अंबेडकर जी ने मंदिर प्रवेश आंदोलन 1927 ई० में शुरू किया। इसमें समाज के पिछड़े वर्गों ने बड़ी संख्या में भाग लिया, क्योंकि उन्हें मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। ब्राह्मण पुजारी इस बात पर बहुत आग बबूला हुए कि पिछड़े वर्गों के लोग भी मंदिर के जलाशय का पानी प्रयोग कर रहे हैं। 1927 से 1935 के बीच अंबेडकर जी ने मंदिरों में प्रवेश के लिए ऐसे तीन आंदोलन चलाए। वह पूरे देश को दिखाना चाहते थे कि समाज जातीय पूर्वाग्रहों से पूरी तरह ग्रस्त है। वह इन पूर्वाग्रहों को मिटा कर सामाजिक समानता को दूर करना चाहते थे और पिछड़े वर्गों के लोगों को सम्मान दिलाना चाहते थे।
प्रश्न 9 – मंदिर प्रवेश आंदोलन के जरिए अम्बेडकर क्या हासिल करना चाहते थे ?
उत्तर :- ज्योतिराव फूले तथा रामास्वामी नायकर ने महसूस किया कि राष्ट्रीय आंदोलन जातीय असमानता पर आधारित है। इसमें सभी जातियों को समान दर्जा प्राप्त नहीं है। नायकर कांग्रेस के सदस्य बने थे। उन्हें उस समय बहुत निराशा हुई जब कांग्रेस के एक भोज में उच्च तथा निम्न कहीं जाने वाली जातियों के लिए अलग – अलग बैठने की व्यवस्था की गई। हताश होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और राष्ट्रीय आंदोलन के आलोचक बन गए। उनकी समझ में आ था कि उन्हें अपने अधिकारों तथा स्वाभिमान के लिए स्वयं लड़ाई लड़नी होगी। इस लड़ाई को उन्होंने स्वाभिमान आंदोलन का नाम दिया। उनके आंदोलन को देखते हुए कांग्रेस ने अछूतोद्धार को भी राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य घोषित कर दिया।
प्रश्न 10- ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलन की आलोचना क्यों करते थे ? क्या उनको आलोचना से राष्ट्रीय संघर्ष में किसी तरह की मदद मिली ?
उत्तर :- ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आंदोलनों के आलोचक थे। उनके अनुसार, उपनिवेशवादी और उच्च जातियाँ दोनों बाहरी थे और उन्होंने स्वदेशी लोगों पर अत्याचार किया और उन्हें अपने अधीन कर लिया और उन्हें निम्न वर्ग मानते थे। ज्योतिराव फुले ने हमेशा उच्च जाति को बाहरी लोगों के रूप में माना था जिन्होंने लोगों को अपनी जमीन पर प्रताड़ित किया और उन्हें निम्न और निम्न जाति के रूप में माना। उनके अनुसार, उच्च जाति के लोगों ने राष्ट्रवादी आंदोलनों में भाग लिया ताकि एक बार उपनिवेशवादी देश छोड़ दें, वे फिर से निचली जातियों के लोगों पर अपनी शक्ति का उपयोग कर सकें। आरएन के अनुसार रामास्वामी नायकर द्रविड़ संस्कृति के सच्चे समर्थक थे, जिन्हें अछूत माना जाता था और ब्राह्मणों द्वारा उत्पीड़ित किया जाता था। उनका मानना था कि निचली जाति को अपनी मर्यादा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इन आलोचनाओं ने उच्च जाति के राष्ट्रवादी नेताओं के बीच पुनर्विचार और आत्म-निंदा करने में मदद की।
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