NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 3 ग्रामीण छेत्र पर शासन चलाना के लिए NCERT solution में इतिहास पुस्तक – हमारे अतीत -III में दिए गए अभ्यासों के समाधान शामिल हैं।कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान पाठ 3 के प्रश्न उत्तर को NCERT को ध्यान में रखकर छात्रों की सहायता के लिए बनाया गया हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास हमारे अतीत -3 का उदेश्य केवल अच्छी शिक्षा देना हैं। यदि आप कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान के प्रश्न उत्तर (Class 8 Social Science NCERT Solutions) पढ़ना चाहते है तो आप सही जगह पे आए है। आपको बात दे की सामाजिक विज्ञान विषय के यह कक्षा 8 एनसीईआरटी समाधान पीडीएफ़ की तौर मे डाउनलोड भी कर सकते है।
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NCERT Solution Class 8 Social science history अध्याय 3 ग्रामीण छेत्र पर शासन चलाना Download as PDF
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 इतिहास पुस्तक अध्याय संक्षेप में
अध्याय 3 – ग्रामीण इलाकों पर शासन करना
छात्र यह सीखेंगे कि कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल प्रशासन पर कब्ज़ा कर लिया। वे समझेंगे कि कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने रॉबर्ट क्लाइव से दीवानी अधिकार हासिल किए, जिन्होंने मुगल शासक से बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी स्वीकार की थी। पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों का उत्तर देते समय उत्पन्न होने वाले सभी संदेहों के लिए, छात्र उन समाधानों का उपयोग कर सकते हैं जो ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रारूपों में उपलब्ध हैं।
NCERT Solutions for Class 8
विषय : सामाजिक विज्ञान इतिहास (हमारे अतीत – III)
अध्याय 3. ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना (Hindi Medium)
फिर से याद करें:-
1 . निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ:-
रैयत – ग्राम समूह
महाल – किसान
निज – रैयतों की जमीन पर खेती
रैयती – बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती
उत्तर:-
रैयत – किसान
महाल – ग्राम समूह
निज – बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती
रैयती – रैयतों की जमीन पर खेती
- रिक्त स्थान भरें :-
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों यह ___ से अपनी आमदनी में गिरावट का ख़तरा दिखाई देता था।
(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग ___ के कारण बढ़ने लगी।
(ग) ____ की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय मांग पर बुरा असर पड़ा।
(घ) चम्पारण आंदोलन _____ के ख़िलाफ़ था।
उत्तर:-
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों यह नील के आयात से अपनी आमदनी में गिरावट का ख़तरा दिखाई देता था।
(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग औद्योगिकरण के कारण बढ़ने लगी।
(ग) कृत्रिम रंगों की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय मांग पर बुरा असर पड़ा।
(घ) चम्पारण आंदोलन नील बाग़ान मालिकों के ख़िलाफ़ था।
आइए विचार करें:-
प्रश्न 3 – स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :- स्थाई बंदोबस्त-लार्ड कॉर्नवॉलिस ने 1793 में स्थायी बंदोबस्त लागू किया।
- राजाओं और तालुकदारों को जमींदारों के रूप में मान्यता दी गई।
- जमींदारों को किसानों से राजस्व इकट्ठा कर कंपनी के पास जमा कराने का काम दिया गया।
- जमीनों की राजस्व राशि स्थायी रूप से निश्चित कर दी गयी।
- किसानों से भूमि संबंधी अधिकार छीन लिए गए, जिससे किसान जमींदारों की दया पर निर्भर हो गए। वे अपनी ही जमीन पर मजदूरों की तरह काम करने लगे।
प्रश्न 4 – महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी ?
उत्तर :- महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले निम्न प्रकार अलग थी –
- स्थायी बंदोबस्त में व्यक्ति विशेष की जमीन की मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर राजस्व का निर्धारण किया जाता था, वहीं दूसरी तरफ महालवारी व्यवस्था में राजस्व का भुगतान पूरे गाँव, जिसे महाल कहा जाता था, के द्वारा किया जाता था।
- स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व को निश्चित कर दिया गया था जिसको भविष्य में भी बढ़ाया नहीं जा सकता था, जबकि महालवारी व्यवस्था में समय-समय पर भू-राजस्व का पुनर्मूल्यांकन किया जाना था।
- स्थायी बंदोबस्त में भू-राजस्व के संग्रह करने की जवाबदेही जमींदारों की थी जबकि महालवारी व्यवस्था में यह जवाबदेही जमींदारों की थी जबकि महालवारी व्यवस्था में यह जवाबदेही गाँव के मुखिया की थी।
प्रश्न 5 – राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर :- मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा समस्याएँ
- ज़मीन से होने वाली आय को बढ़ाने के चक्कर में राजस्व अधिकारियों ने बहुत ज्यादा राजस्व तय कर दिया। किसान राजस्व नहीं चुका पा रहे तथा गाँव छोड़कर भाग रहे थे।
- मुनरो व्यवस्था से अफसरों को उम्मीद थी कि यह नई व्यवस्था किसानों को संपन्न उद्यमशील किसान बना देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ
प्रश्न 6 – रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे ?
उत्तर :- रैयतों का नील की खेती से कतराने का कारण-
- किसानों को नील की खेती करने के लिए अग्रिम ऋण दिया जाता था, परंतु फसल कटने पर कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर किया जाता था जिससे वे अपना ऋण नहीं चुका पाते थे और कभी न खत्म होने वाले कर्ज के चक्र में फँस जाते थे।
- बागान मालिक चाहते थे कि किसान अपने सबसे उपजाऊ खेतों पर नील की खेती करें, लेकिन किसानों को नील की खेती करने के लिए अतिरिक्त मेहनत तथा समय की आवश्कता होती थी जिस कारण किसान अपनी अन्य फसलों के लिए समय नहीं दे पाता था।
प्रश्न 7 – किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया ?
उत्तर :- बंगाल में नील के उत्पादन के धराशायी होने की परिस्थितियाँ
- मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती करने से मना कर दिया।
- रैयतों ने निर्णय लिया कि न तो वे नील की खेती के लिए कर्ज लेंगे और न ही बागान मालिकों के लाठीधारी गुंडों से डरेंगे।
- कंपनी द्वारा किसानों को शांत करने और विस्फोटक स्थितियों को नियंत्रित करने की कोशिश को किसानों ने अपने विद्रोह का समर्थन माना।
- नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच करने के लिए बनाए गए नील आयोग ने भी बाग़ान मालिकों को जोर-जबर्दस्ती करने का दोषी माना और आयोग ने किसानों को सलाह दी वे वर्तमान अनुबंधों को पूरा करें तथा आगे से वे चाहें तो नील की खेती को बंद कर सकते हैं।
इस प्रकार बंगाल में नीले का उत्पादन धराशायी हो गया।
आइए करके देखें :-
प्रश्न 8 – चंपारण आंदोलन और उसमें महात्मा गांधी की भूमिका के बारे में और जानकारियाँ इकट्ठा करें।
उत्तर :- अफ्रीका से वापसी के बाद गांधी जी चंपारण के नील उत्पादक किसानों के बीच उनकी समस्याओं को जानने के लिए पहुँचे।
- गांधी जी नील उत्पादक किसानों के विरोध को अपना समर्थन दिया।
- गांधी जी भारत में अपना पहला सत्याग्रह चंपारण से शुरू किया जोकि नील उत्पादक किसानों के समर्थन में बागान मालिकों के विरुद्ध था।
- सरकार ने दमनकारी नीति अपनाई और गांधी जी को गिरफ्तार किया गया।
- अंत में सरकार को झुकना पड़ा और नील उत्पादक किसानों की जीत हुई तथा गांधी जी के सत्याग्रह का प्रयोग सफल रहा।
प्रश्न 9 – भारत के शुरुआती चाय या कॉफी बागानों का इतिहास देखें। ध्यान दें कि इन बागानों में काम करने वाले मजदूरों और नील के बागानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन में क्या समानताएँ या फर्क थे।
उत्तर :- चाय या कॉफी बाग़ानों तथा नील बाग़ानों के मजदूरों के जीवन में समानताएँ ब अंतर
- चाय बागानों में मजदूरों को अनुबंधों के आधार पर रखा जाता था जबकि नील बागानों में ऐसा नहीं था।
- चाय या कॉफी बागानों में पूरे वर्ष काम होता था जबकि नील बाग़ानों में फसल कटाई या बुवाई के समय अधिक काम होता था।
- चाय या कॉफी बागानों से मज़दूर अनुबंध की अवधि के दौरान बागानों से बाहर नहीं जा सकते थे जबकि नील बाग़ानों में ऐसा नहीं होता था।
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